Friday 24 February 2017

भारतीय रुपये के नोट की विशेषताएँ



  • भारतीय रुपया 1957 तक तो 16 आनों में विभाजित रहा, परन्तु उसके बाद (1957 में ही) उसने मुद्रा की दशमलव प्रणाली अपना ली और एक रुपये की गणना 100 समान पैसों में की गई।
  • महात्मा गांधी वाले कागजी नोटों की शृंखला की शुरूआत 1996 में हुई, जो आज तक चलन में है।
  • नोटों के एक ओर सफेद वाले भाग में महात्मा गांधी का वाटर मार्क बना हुआ है।
  • सभी नोटों में चांदी का सुरक्षा धागा लगा हुआ है जिस पर अंग्रेज़ी में आरबीआई और हिंदी में भारत अंकित है। प्रकाश के सामने लाने पर इनको देखा जा सकता है।
  • पांच सौ और एक हज़ार रुपये के नोटों में उनका मूल्य प्रकाश में परिवर्तनीय स्याही से लिखा हुआ है। धरती के समानान्तर रखने पर ये संख्या हरी दिखाई देती हैं परन्तु तिरछे या कोण से देखने पर नीले रंग में लिखी हुई दिखाई देती हैं।
  • बात सन् 1917 की हैं, जब 1₹ रुपया 13$ डॉलर के बराबर हुआ करता था। फिर 1947 में भारत आजाद हुआ, 1₹ = 1$ कर दिया गया। फिर धीरे-धीरे भारत पर कर्ज बढ़ने लगा तो इंदिरा गांधी ने कर्ज चुकाने के लिए रुपये की कीमत कम करने का फैसला लिया उसके बाद आज तक रुपये की कीमत घटती आ रही है। सुरक्षा कारणों की वजह से आपको नोट के सीरियल नंबर में I, J, O, X, Y, Z अक्षर नही मिलेंगे।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक ने जनवरी 1938 में पहली बार 5 ₹ की पेपर करंसी छापी थी। जिस पर किंग जार्ज-6 का चित्र था। इसी साल 10,000 ₹ का नोट भी छापा गया था लेकिन 1978 में इसे पूरी तरह बंद कर दिया गया।
  • आज़ादी के बाद पाकिस्तान ने तब तक भारतीय मुद्रा का प्रयोग किया जब तक उन्होंने काम चलाने लायक नोट न छाप लिए।
  • एक समय ऐसा था, जब बांग्लादेश ब्लेड बनाने के लिए भारत से 5 रूपए के सिक्के मंगाया करता था। 5 रूपए के एक सिक्के से 6 ब्लेड बनते थे। 1 ब्लेड की कीमत 2 रुपए होती थी तो ब्लेड बनाने वाले को अच्छा फायदा होता था। इसे देखते हुए भारत सरकार ने सिक्का बनाने वाला मेटल ही बदल दिया।
  • आज़ादी के बाद सिक्के तांबे के बनते थे। उसके बाद 1964 में एल्युमिनियम के और1988 में स्टेनलेस स्टील के बनने शुरू हुए।
  • भारतीय नोट पर महात्मा गांधी की जो फोटो छपती हैं वह तब खींची गई थी जब गांधीजी, तत्कालीन बर्मा और भारत में ब्रिटिश सेक्रेटरी के रूप में कार्यरत फ्रेडरिक पेथिक लॉरेंस के साथ कोलकाता स्थित वायसराय हाउस में मुलाकात करने गए थे। यह फोटो 1996 में नोटों पर छपनी शुरू हुई थी। इससे पहले महात्मा गांधी की जगह अशोक स्तंभ छापा जाता था।
  • भारत के 500 और 1,000 रूपये के नोट नेपाल में नहीं चलते।
  • 500 ₹ का पहला नोट 1987 में और 1,000 ₹ पहला नोट सन् 2000 में बनाया गया था। फिलहाल 1,000 ₹ का नोट बंद हो चुका है। और 500₹ का नया नोट बाज़ार में आ रहा है।
  • भारत में 75, 100 और 1,000 ₹ के भी सिक्के छप चुके हैं।
  • 1 ₹ का नोट भारत सरकार द्वारा और 2 से 1,000 ₹ तक के नोट RBI द्वारा जारी किये जाते थे।
  • एक समय पर भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए 0 ₹ का नोट 5th pillar नाम की गैर सरकारी संस्था द्वारा जारी किए गए थे।
  • 10 ₹ के सिक्के को बनाने में 6.10₹ की लागत आती हैं।
  • नोटों पर सीरियल नंबर इसलिए डाला जाता हैं ताकि आरबीआई (RBI) को पता चलता रहे कि इस समय मार्केट में कितनी करंसी हैं।
  • रुपया भारत के अलावा इंडोनेशिया, मॉरीशसनेपालपाकिस्तान और श्रीलंका की भी करंसी हैं।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक के अनुसार भारत हर साल 2,000 करोड़ करंसी नोट छापता हैं।
  • कम्प्यूटर पर ₹ टाइप करने के लिए ‘Ctrl+Shift+$’ के बटन को एक साथ दबाएँ।
  • ₹ के इस चिन्ह को 2010 में उदय कुमार ने बनाया था। इसके लिए इनको 2.5 लाख रूपयें का इनाम भी मिला था।
  • हर सिक्के पर सन् के नीचे एक खास निशान बना होता है आप उस निशान को देखकर पता लगा सकते हैं कि ये सिक्का कहाँ बना हैं-
    • मुंबई – हीरा [◆]
    • नोएडा – डॉट [.]
    • हैदराबाद – सितारा [★]
    • कोलकाता – कोई निशान नहीं

  • एक नोट को छापने में लगने वाली लागत
    • 1₹ = 1.14₹
    • 10₹ = 0.66₹
    • 20₹ = 0.94₹
    • 50₹ = 1.63₹
    • 100₹ = 1.20₹
    • 500₹ = 2.45₹
    • 1,000₹ = 2.67₹

    भारतीय रुपये के नोट के भाषा पटल पर भारत की 22 सरकारी भाषाओं में से 15 में उनका मूल्य मुद्रित है। ऊपर से नीचे इनका क्रम इस प्रकार है – असमियाबंगलागुजरातीकन्नड़कश्मीरीकोंकणीमलयालममराठीनेपालीउड़ियापंजाबीसंस्कृततमिलतेलुगु और उर्दू

    जानते हैं नोटों पर गाँधी जी ही क्यों हैं


    हमारे देश में क्रांतिकारियों की कमी नही थी लेकिन हमारे देश की करेंसी नोटों पर महात्मा गाँधी की फोटो ही क्यों? ये बात तो सच है देश को आजादी दिलाने में महात्मा गाँधी का बड़ा योगदान था, देश को आजादी दिलाने के लिए और भी क्रांतिकारी लड़े थे सूली पर चढ़े थे तो फिर गाँधी की फोटो ही क्यों? हम आपको बताते हैं कि नोट पर महात्मा गाँधी की फोटो क्यों हैं 
    एक कारण तो हमे समझ आता है गाँधी जी इंडिया में हो या इंडिया से बाहर सबसे ज्यादा मान्यता देने के योग्य गाँधी जी ही थे जिन्हें हर कोई जानता था इंडिया में तरह-तरह के लोग हैं हर राज्य के लोग ये चाहते हैं कि करेंसी नोटों पर हमारे राज्य के हीरो की फोटो हो 
    अब बात हिन्दू-मुसलमान के मजहब की भी थी अलग-अलग रिवाज़ के लोग ये चाहते थे कि करेंसी नोटों पर उनके मजहब का कोई जाबाज़ की फोटो हो जितने तरह के लोग उतने तरह के ही मतभेद 

    महात्मा गाँधी जी ही एक ऐसे व्यक्ति थे जो हर धर्म, मजहब और जाति के लोगों के बीच रह सकते थे, यही कारण था कि गाँधी जी को करेंसी नोटों पर लाया गया 
    1987 में वह पहली बार 500 के नोटों पर नजर आने लगे और फिर 1996 से वह हर नोट पर दिखाई देने लगे हैं।
    बापू से पहले भारतीय नोटों पर अशोक स्तंभ नजर आता था। आरटीआई ऐक्टिविस्ट मनोरंजन रॉय ने जब यह जानना चाहा कि कैसे और कब से महात्मा गांधी की तस्वीर नोटों पर हैं, उन्हें आरबीआई द्वारा यह बताया गया कि इस बारे में कोई डॉक्युमेंट मौजूद नहीं है। आरबीआई के प्रवक्ता ने बताया कि 1993 में आरबीआई के सेंट्रल बोर्ड ने गांधी इमेज का सुझाव दिया था जिसे भारत सरकार ने अप्रूव कर दिया था।

    Monday 20 February 2017

    भारत के राष्ट्रपति

    स्वतंत्र भारत की संवैधानिक संरचना की परिकल्पना २६ जनवरी १९५० को भारतीय गणतंत्र की स्थापना के रूप में परिणित हुई, संविधान द्वारा भारत के संघीय लोकतांत्रिक सरकार का प्रमुख अनंत शक्ति सम्पन्न राष्ट्रपति होता है जिसका चयन जन प्रतिनिधियों द्वारा निर्वाचन पद्धति से पाँच वर्ष के लिये किया जाता है

    डा राजेन्द्र प्रसाद : - कार्यकाल २६ जनवरी १९५० से १३ मई १९६२
    ३दिसंबर १८८४ को बिहार के सारन जिले के एक संभ्रांत कायस्थ परिवार में जन्मे राजेन्द्र बाबू वकालत छोड़ कर गांधी जी के नेतृत्व में स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े आज़ादी की लड़ाई में उनको कई बार जेल की यात्रा करनी पड़ी वे भारत के एकमात्र राष्ट्रपति हैं जिन्होंने दो कार्य-कालों तक राष्ट्रपति पद पर कार्य किया

    डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन : - कार्यकाल १३ मई १९६२ से १३ मई १९६७
    दक्षिण भारतीय तमिल ब्राह्मण परिवार में जन्मे राधाकृष्णन एक उच्च दर्शन शास्त्री एवं प्रतिभाशाली विद्वान तथा प्रख्यात लेखक के रूप में प्रतिष्ठित थे इनके जन्मदिवस ५ सितंबर को 'अध्यापक दिवस' के रूप में भारतीय विद्यालयों में आज भी बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है आपको अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों द्वारा मानद उपाधियों से विभूषित किया गया था

    डा. ज़ाकिर हुसैन : - कार्यकाल १३ मई १९६७ से ३ मई १९६९
    इनका जन्म उत्तर-प्रदेश के धनाढ्य पठान परिवार में हुआ था केवल २३ वर्ष की अवस्था में वे जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय की स्थापना दल के सदस्य बने वे अर्थशास्त्र में पीएच. डी की डिग्री के लिए जर्मनी के बर्लिन विश्वविद्यालय गए और लौट कर जामिया के उप कुलपति के पद पर भी आसीन हुए १९६९ में असमय देहावसान के कारण वे अपना राष्ट्रपति कार्यकाल पूरा नहीं कर सके।

    वाराह गिरि वेंकट गिरि : - कार्यकाल ३ मई १९६९ से २४ अगस्त १९७४
    १० अगस्त १८९४ में जन्मे श्रमिक संघी गिरि का जन्म उड़ीसा प्रान्त में हुआ, उच्च शिक्षा हेतु वे डबलिन विश्वविद्यालय गए वे श्रीलंका में भारत के राजदूत तथा उत्तर प्रदेश, केरल और तत्कालीन मैसूर के राज्यपाल भी रहे प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी अपने राष्ट्रीयकरण की उदारवादी नीतियों के समर्थन के लिए उन्हें राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में लाईं।

    फ़ख़रूद्दीन अली अहमद : - कार्यकाल २४ अगस्त १९७४ से ११ फ़रवरी १९७७
    दिल्ली के धनी परिवार में जन्मे फ़ख़रूद्दीन अली अहमद की शिक्षा इंग्लैंड में हुई थी इनकी गणना कांग्रेस के प्रमुख नेताओं में की जाती थी सन १९७४ में वे उस समय राष्ट्रपति बने, जब समूचा देश इंदिरा गांधी की नीतियों का विरोध कर रहा था, ऐसे समय में प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के सुझाव से १९७५ में आंतरिक आपात स्थिति की घोषणा के कारण इनका कार्यकाल काफी अलोकप्रिय रहा १९७७ में अचानक हृदयगति रुक जाने के कारण इनका देहावसान हो गया।

    नीलम संजीव रेड्डी : - कार्यकाल २५ जुलाई १९७७ से २५ जुलाई १९८२
    आंध्र प्रदेश के कृषक परिवार में जन्मे नीलम संजीव रेड्डी की छवि कवि, अनुभवी राजनेता एवं कुशल प्रशासक के रूप में थी इनका सार्वजनिक जीवन उत्कृष्ट था सन १९७७ के आम चुनाव में जब इंदिरा गांधी की पराजय हुई, उस समय नव-गठित राजनीतिक दल जनता पार्टी ने इनको राष्ट्रपति का प्रत्याशी बनाया वे भारत के पहले गैर काँग्रेसी राष्ट्रपति थे।

    ज्ञानी जैल सिंह : - कार्यकाल २५ जुलाई १९८२ से २५ जुलाई १९८७
    सिख धर्म के विद्वान पंजाब के मुख्यमंत्री रह चुके ज्ञानी जी अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति, सत्यनिष्ठा के राजनीतिक कठिन रास्तों को पार करते हुए १९८२ में भारत के गौरवमयी राष्ट्रपति के पद पर आसीन हुए १९८७ तक के अपने कार्यकाल के दौरान इन्हें 'ब्लूस्टार आपरेशन' एवं इंदिरा गांधी की हत्या जैसी दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों से गुजरना पड़ा।

    आर. वेंकटरमण : - कार्यकाल २५ जुलाई १९८७ से २५ जुलाई १९९२
    कानून के प्रकांड पंडित श्री आर वेंकट रमण दक्षिण भारतीय श्रमिक संघी थे वे तमिलनाडु की राज्य सरकार में मंत्री रहे और १९८७ में राष्ट्रपति के पद पर आरूढ़ हुए १९८९ के आम चुनाव मे किसी भी राजनीतिक दल को स्पष्ट बहुमत न मिलने के कारण इन्होंने प्रधानमंत्री के चुनाव में कठिन भूमिका का निर्वहन किया।

    डा. शंकर दयाल शर्मा :- कार्यकाल २५ जुलाई १९९२ से २५ जुलाई १९९७
    इनकी उच्च शिक्षा कैंब्रिज विश्वविद्यालय में हुई वे प्रकांड विद्वान थे, आंध्र प्रदेश, पंजाब तथा महाराष्ट्र के राज्यपाल के पद पर रहे, इन्हीं के कार्यकाल के बाजपेयी की १३ दिन की सरकार बनी थी आपने कैंब्रिज विश्वविद्यालय में अध्यापन भी किया विश्वविद्यालय ने आपको 'डाक्टर आफ ला' की मानद विभूति से अलंकृत किया था

    कोच्चेरी रामण नारायणन :- कार्यकाल २५ जुलाई १९९७ से २५ जुलाई २००२
    केरल में जन्मे के आर नारायण भारत के पहले दलित राष्ट्रपति थे आपने त्रावणकोर विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त करने के बाद "लंदन स्कूल आफ इकोनोमिक्स" में अर्थशास्त्र का अध्ययन किया आपकी गणना भारत के कुशल राजनीतिज्ञों में की जाती है आपका कार्यकाल भारत की राजनीति में गुजरने वाली विभिन्न अस्थिर परिस्थितियों के कारण अत्यंत पेचीदा रहा।

    अबुल पकिर जैनुलाअबदीन अब्दुल कलाम:- कार्यकाल २५ जुलाई २००२ से २५ जुलाई २००७१५ अक्तूबर, १९३१, रामेश्वरम, तमिलनाडु में जन्मे अब्दुल कलाम ने १९५८ में मद्रास इंस्टीट्यूट आफ टेकनालजी से अंतरिक्ष विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की १९६२ में वे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन में आये रोहिणी उपग्रह के सफल प्रक्षेपण, अग्नि व पृथ्वी मिसाइल के निर्माण तथा पोखरण के परमाणु परीक्षण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है

    प्रतिभा पाटिल २५ जुलाई २००७ से ५ जुलाई २०१२ तक
    १९ दिसंबर १९३४ को महाराष्ट्र के जलगांव जिले में जन्मी प्रतिभा देवीसिंह पाटिल ने मुंबई के गवर्नमेंट लॉ कालेज से कानून की पढाई की वे टेबल टेनिस की अच्छी खिलाड़ी थीं महाराष्ट्र सरकार में वे राज्यमंत्री और कैबिनेट मंत्री रहीं १९८६ में वे राज्यसभा की उपसभापति, १९८९-१९९० में महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस की प्रमुख तथा २००४ में राजस्थान की राज्यपाल बनीं २५ जुलाई २००७ को वे भारत की राष्ट्रपति चुनी गईं।

    प्रणव मुखर्जी २५ जुलाई २०१२ से
    ११ दिसंबर १९३५ को जन्मे प्रणव मुखर्जी ने कोलकाता विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान तथा इतिहास में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की तथा कानून की पढ़ाई भी की उन्होंने वकील और कॉलेज प्राध्यापक और पत्रकार के रूप में भी काम किया है १९७३ में वे औद्योगिक विकास विभाग के केंद्रीय उप मन्त्री के रूप में मन्त्रिमण्डल में शामिल हुए १९८४ में भारत के वित्त मंत्री बने उन्होंने राव के मंत्रिमंडल में १९९५ से १९९६ तक विदेश मन्त्री के रूप में भी कार्य किया





    Thursday 16 February 2017

    सामंतवाद का विकास

    सामंतवाद का  विकास :- सामंतवाद के विकास को भूमि अनुदान परंपरा के आलोक में देखे जाने की जरूरत है । भूमि अनुदान की यह प्रक्रिया मौर्योत्तर काल में अक्षयनीवि तथा भूमिछिद्रन्याय के रूप में प्रारम्भ हुई । सातवाहन अभिलेखों में भूमिदान के प्रारंभिक प्रतात्विक साक्ष्य प्रथम शताब्दी ई. से मिलते है । इस काल में भूमिदान मुख्यतः धार्मिक द्रष्टिकोण से दिया जाते थे और इसमें अनुदान प्राप्तकर्त्ताओ को राजस्व वसूलने का अधिकार प्राप्त था।
    गुप्तकाल में भूमि अनुदान तथा उससे जुड़े अधिकारों में व्यापक परिवर्तन आया। अब अनुदान प्राप्तकर्त्ता को राजस्व वसूली के अतिरिक्त इन क्षेत्रों में स्थित भूगर्भीय संपदा के उपयोग तथा उस क्षेत्र के प्रशासनिक उत्तरदायित्व का भी अधिकार दिया गया । दान की गई भूमि और गाँवो को राजकीय अधिकारियों एवं सैनिको के हस्तक्षेप से मुक्त क्र दिया गया । इसके साथ ही दानग्रहीता को न्याय एवं दंड का अधिकार भी दिया गया । गुप्त अभिलेखों में 'अम्य्न्र्सिध्दि' के रूप में दानग्रहीत के दीवाना मुकदमो के अधिकारों की पुष्टि करता है । तो 'सदण्डअपराध' शब्द फौजीदारी मुकदमों के अधिकार की पुष्टि करता है । समुद्रगुप्त ने अपनी दिग्विजय के दौरान विभ्भिन राजाओं के साथ जो संबध स्थापित किये उससे भी सामंतवाद के विकास को प्रोत्साहन मिला।  
    गुप्तोत्तर काल  में वेतन के बदले राज्याधिकारिओ को भी भू -दान  बड़ी मात्रा में दिये जाने लगे । इस तरह से प्राप्त भूमि पर सामान्यतः पैतृक अधिकार स्थापित हो गया । परिणामस्वरूप नौकरशाही का सामंतीकरण हो गया । इसके अतिरिक्त भूमि अनुदान प्राप्तकर्त्ता को संबंधित क्षेत्र के निवासियों ,जैसे किसानों और कारीगरों पर भी अधिकार प्राप्त हो गया । यह प्रक्रिया छठी शताब्दी में उड़ीसा ,मध्य भारत ,महाराष्ट्र आदि क्षेत्र में शुरू हुई और 8वीं  से 10वीं सदी तक असम ,केरल ,तमिलनाडु में भी विस्तृत हो गई और इसका स्वरूप अखिल भारतीय हो गया । इस प्रकार गुप्तकालीन भूमिदानग्रहीत छोटे स्वायत्त शासक के रूप में स्थापित हो गए । आगे इन्होंने अपनी शक्ति का विस्तार किया और महासमंतो की उपाधि धारण करने लगे ।   


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    पूर्व मध्र्यकालीन भारत

    भारतीय सामंतवाद     

    सामंतवाद :- पूर्व मध्यकालीन समाज में एक नवीन वर्ग का उदभव हुआ जिसे सामंत वर्ग के रूप में जाना गया । इन सामन्तों के हित भूमि से संबध्द थे । मूलतः नए भू -स्वामियों के रूप में ही सामंतो के भू -स्वामित्व संबंधी सर्वोच्च अधिकार स्थापित हुए और उन्हें राजस्व वसूली एवं प्रशासनिक अधिकार इस भूमि क्षेत्र में प्राप्त हुए । 
    यधपि भारत में सामंतवाद का अंकुरण कुषाण -सातवाहन काल से ही दिखाई देने लगता है लेकिन इसका पूर्ण विकास पूर्व मध्यकाल में ही हुआ । इस काल की राजनीतिक ,आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियों ने सामंतवाद के विकास लिए उपयुक्त आधार प्रदान किया । 
    यह सामंतवाद राजनीतिक व्यवस्था के साथ साथ सामाजिक -आर्थिक संबंधों को प्रदर्शित करता है । राजनैतिक क्षेत्र में सत्ता का विकेंद्रीकरण हुआ , एक राजा के अधीन अनेक सामंतो का प्रादुर्भाव हुआ ये सामंत अनेक राजनीतिक इकाइयों के रूप में स्थापित हुए । 
    आर्थिक क्षेत्र में आत्मनिर्भर स्थानीय उत्पादन इकाईयाँ क्रियाशील हुई तथा आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्सांहन मिला तथा यह एक बंद अर्थव्यवस्था (Closed Economy ) के रूप में सामने आया । सामाजिक क्षेत्र में किसानों के शोषण एवं सामाजिक संघर्ष को प्रोत्साहन देने के रूप में सामने आया । धार्मिक क्षेत्र में निम्ण वर्गों के शोषण को औचित्य प्रदान करने वाली अवधारणा के रूप में सामने आया । 
      कुल मिलाकर नए भूमि संबंधों ने सामंत के रूप में एक ऐसे वर्ग को जन्म दिया जिसने तत्युगीन जीवन को गहरे स्तर पर प्रभावित कर जिस संरचना को निर्मित किया वह सामंतवादी व्यवस्था के रूप में जानी जाती है ।  



    सामंतवाद का विकास  Next Topic comming soon..............

    Tuesday 14 February 2017

    बजट क्या है ? पहला बजट और स्वतंत्र भारत का पहला बजट कब पेश किया था

    बजट :- पारंपरिक भाषा में आमंदनी और खर्चे की सूची को बजट कहते हैं । बजट फ्रेंच भाषा के ' बूजट ' शब्द से आया है।  बूजट का अर्थ होता है ' चमड़े की थैली ' । 1773 में  ब्रिटिश वित्त मंत्री रॉवर्ट वालपोल ने अपने वित्तीय प्रस्ताव को चमड़े के बैग से निकाला था और तब से बजट शब्द का प्रयोग सरकारी तौर पर होने लगा । बजट सामान्यतः सरकार की आगामी वित्तीय वर्ष की आर्थिक ,समाजिक कार्यक्रम में आने वाला खर्च और आमंदनी का प्रस्तावित ढाँचा होता है । जिससे सरकार यह दिखा सके कि आने वाले साल में सरकार किस तरह से अपनी योजनाओं पर काम करेगी । 
    पहला बजट :- जेम्स विल्सन को भारतीय बजट का संस्थापक भी कहते है। भारत में पहला बजट 18 फरवरी 1860 को वायसराय की परिषद में जेम्स विल्सन ने ही पेश किया था । तब भारत पर अंग्रेजों का राज था और इस वजह से बजट के दौरान भारतीयों को बोलने तक का अधिकार नही था।
    स्वतंत्र भारत का पहला बजट :-  स्वतंत्र भारत का पहला बजट तत्कालीन वित्त मंत्री आर.के. शनमुखम चेट्टी ने 26 नंवबर 1947 को पेश किया था और इसमें भारतीय अर्थव्यवस्था की समीक्षा की गई थी तथा कोई नया टैक्स नही लगाया गया था। 
    • भारत में 1 अप्रैल से 31 मार्च तक चलने वाला वित्तीय वर्ष 1867 से शुरू हुआ,इससे पहले तक 1 मई से 30 अप्रैल तक का वित्तीय वर्ष होता था । 
    • भारतीय संविधान के अनुच्छेद -112 में भारत के केंद्रीय बजट को वार्षिक वित्तीय विवरण के रूप में निदिर्ष्ट किया गया है ,जो कि भारत गणराज्य का वार्षिक बजट होता है । 
    • 1995 -56 से बजट के दस्तावेज़ को हिन्दी में भी तैयार किये जाने लगा ,इससे पहले बजट केवल अंग्रेजी में बनाया जाता था । 
    • वर्ष 2000 तक अंग्रेजी पंरपरा से अनुसार बजट शाम को 5 बजे प्रस्तुत किया जाता था,लेकिन 2001 में एनडीए सरकार ने इस पंरपरा को तोड़ते हुए शाम की बजाय सुबह 11 बजे संसद में बजट पेश किया । 
    • बजट दो भागों में बँटा होता है । पहले भाग में सामान्य आर्थिक सर्वे और नीतियों का ब्योरा होता है जबकि दूसरे भाग में आगामी वित्त वर्ष के लिये प्रत्यक्ष और परोक्ष करों के प्रस्ताव को रखा जाता है । 

    विमुद्रीकरण और उसके परिणाम

    8 नवम्बर ,2016 को RBI की सहमति से भारत सरकार ने यह घोषणा की कि ₹500 और ₹1000 के बैंक नोटों को अब क़ानूनी रूप से अवैध माना जायेगा   "अर्थशास्त्र के अध्ययन के अंतर्गत किसी भी सीरीज एवं मूल्यवर्ग की मुद्राओं के अवैधिकरण की इस प्रक्रिया को विमुद्रीकरण कहा जाता है।  "








    विमुद्रीकरण के सकारात्मक परिणाम 

    • बहुत हद तक कैश में मौजूद काले धन पर नियंत्रण लगा । 
    • जाली नोटों की समस्या एक झटके में लगभग समाप्त हो गई । 
    • आतंकवादियों,नक्सलियों ,उग्रवादियों आदि के आर्थिक संसाधनों पर गहरा प्रभाव पड़ा । 
    • बैंकिंग तंत्र को बड़ी मात्रा में नकदी की प्राप्ति हुई जिससे उसकी मौद्रिक तरलता में व्रद्धि हुई । 
    • राजस्व संग्रह में उल्लेखनीय वृद्वि हुई । 
    • डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा मिला,जिससे वित्तीय तंत्र में पारदर्शिता आएगी । 

    नकारात्मक परिणाम 

    • अर्थव्यवस्था में नकदी का गंभीर संकट उत्पन्न हो गया जिससे सामान्य जनजीवन में व्यापक कठिनाइयां आई । 
    • कृषि ,विनिर्माण एवं असंगठित क्षेत्रों की आर्थिक गतिविधियों पर व्यापक प्रभाव पड़ा । 
    • RBI ,मुद्रा और बैंकिंग प्रणाली के प्रति लोगों का विशवास काम हुआ । 

    आगे कौन -से कदम उठाए जाने चाहिये ?

    • काले धन की समस्या से लड़ने के लिये बेनामी संपत्ति ,रियल एस्टेट क्षेत्र तथा सोना के रूप में अवैध रूप से जमा किये गए धन पर भी कार्रवाई करनी चाहिये । 
    • कैशलेस भुगतान के बारे में जागरूकता फैलाने के साथ साथ वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार कैशलेस की बजाय 'लेस कैश ' को बढ़ावा देना चाहिये । 

    Monday 13 February 2017

    शेयर बाजार से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण जानकारी

    निर्गमित पूंजी (Issued Capital ):- बाजार में कम्पनी  द्धारा जितने मूल्य के शेयर विक्रय के लिये जारी किये जाते हैं उसे निर्गमित पूंजी कहते हैं ।
    आवेदित पूंजी (Subscribed Capital ):- बाजार में निवेशकों द्धारा जितने मूल्य के शेयर ख़रीदे  जाते हैं उसे आवेदित पूंजी कहते हैं ।  
    यदि आवेदित पूंजी का मूल्य निर्गत पूंजी से कम है, इस स्थिति को अल्प आवेदन कहते हैं। अल्प आवेदन के कारण बाजार में शेयर का मूल्य कम होने लगता है वही यदि आवेदित पूंजी का मूल्य निर्गत पूंजी से अधिक है तो इस स्थिति को अति आवेदन कहते हैं । अति आवेदन के कारण बाजार में शेयर मूल्य बढ़ने लगता है यदि आवेदित पूंजी का मूल्य निर्गत पूंजी के बराबर है तो इस स्थिति को पूर्ण आवेदन की स्थिति कहते हैं पूर्ण आवेदन के कारण बाजार में शेयर का मूल्य स्थिर रहता है । 
    बटटा (Discount ) एवं प्रीमियम (Premium ):- अंकित मूल्य की तुलना में शेयर के बाजार मूल्य के अभाव को बटटा कहते है। अंकित मूल्य की तुलना में शेयर के बाजार के आधिक्य को प्रीमियम कहते हैं । यदि अंकित मूल्य और बाजार मूल्य बराबर हो तो उसे मूल्यों में समानता या शेयर एट पार (share at par ) कहते हैं ।

     शेयर मूल्य  सूचकांक (Share Price Index )                        शेयर बाजार (Stock Exchange)               
    Dow Jones     न्यूयॉर्क 
    Nikkei    टोक्यो 
    MDAX    जर्मनी 
    Hang Seng     हांगकांग 
    SGX     सिंगापूर  
    KOSPI     कोरिया 
    SET      थाईलैंड  
    TAIEX    ताइवान 
    NASDAQ     स.रा. अमेरिका  
    SLP    कनाडा  
    Bovespa    ब्राजील   
    MIBTel    इटली  
    MEXBOL(IPC)   मैक्सिको   

    Thursday 9 February 2017

    हरित इमारतें(Green Building) और भारत का इसमें स्थान

    ऐसी इमारत जिसके डिजाइन से लेकर निर्माण और रख-रखाव तक में पर्यावरण का विशेष ध्यान रखा जाता है उसे हरित इमारत कहा जाता है । ये इमारतें बिजली पानी और अन्य संसाधनों की अधिक से अधिक बचत कर प्रदुषण की रोकथाम में मददगार होती है। इन बिल्डिंग्स को ग्रीन कंस्ट्रक्शन या सस्टेनेबल बिल्डिंग्स के नाम से भी जाना जाता है । अतः राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार आज दुनिया में बिजली की 40 प्रतिशत खपत और कार्बन डाई ऑक्साइड के 24 प्रतिशत उत्सर्जन के लिए पंरपरागत इमारतें जिम्मेदार हैं 
    भारत में हरित इमारतों की शुरुआत 2003 में हैदराबाद के सीआईआई-सोहराबजी गोदरेज ग्रीन बिजनेस सेंटर के निर्माण के साथ हुई थी इसके बाद देश में ग्रीन हरित इमारतें बनाने का सिलसिला धीरे-धीरे चल निकला। 
    इसी का परिणाम है जो आज देश में लगभग 1 करोड़ 60 लाख वर्ग मीटर का हरित इमारत क्षेत्र मौजूद है अथवा इस पर काम चल रहा है । 
       
    हरित इमारतों के मामले में चीन और कनाडा के बाद भारत तीसरे का स्थान है। अमेरिका की ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल की एक रिपोर्ट में अमेरिका को छोड़कर अन्य देशों को रेखांकित किया गया है जहाँ टिकाऊ इमारतों के डिजाइन के क्षेत्र में उल्लेखनीय तरक्की हुई है ।  

    गुरुत्वाकर्ष का नया सिद्धांत

             आइस्टीन के गुरुत्वाकर्ष सिद्धांत का विकल्प माना  गया नया सिद्धांत पहले परिक्षण में सफल हो गया है । 33 हजार से ज्यादा आकाशगंगाओं के अध्ययन में नए सिद्धांत को खरा पाया गया है। यह सिद्धांत केवल द्रव्यमान के आधार पर गुरुत्वाकर्षण का अनुमान लगाता है। 
    नीदरलैंड्स की लीडन औब्जर्वेटरी में अंतरिक्षविद ,मार्गट ब्रावर की अगुवाई वाली टीम ने इस सिद्धांत का परिक्षण किया । 
    यह सिद्धांत नीदरलैंड्स की यूनिवर्सिटी ऑफ़ एम्सटर्डम के भौतिकविद एरिक वर्लिङे  ने दिया है, 
     वैज्ञानिको ने बताया कि गैलेक्सियों का गुरुत्वाकर्षणअपने निकट से गुजरने वाले प्रकाश को मोड़ देता है यह प्रभाव वैसे ही काम करता है जैसे किसी लेंस से गुजरते हुए प्रकाश मुड़ जाता है । इस प्रभाव के कारण आगे वाली आकाशगंगा अपने से पीछे वाली आकाशगंगा के लिए लेंस का काम करती है इस स्थिति में पीछे वाली आकाशगंगा अपनी जगह से कुछ हटकर दिखाई देती है । 

    Wednesday 8 February 2017

    अंतरिक्ष में कचरा 

    जापान की अंतरिक्ष एजेंसी जाक्सा (JAXA) ने अंतरिक्ष से कचरा ले आने के लिए एक अंतरिक्ष यान लॉन्च किया है, जोकि पृथ्वी के चारो ओर  उसकी कक्षा में मौजूद पुराने उपग्रहों से निकले कचरे को लाने का काम करेगा ।
    यह प्रयोग अंतर्राष्ट्रीय सफाई मिशन का एक अहम हिस्सा है, जिसका उद्देश्य अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षा और लगभग 6,74 लाख करोड़ रुपए के अंतरिक्ष स्टेशनों का बचाव करना है । 

    कचरा इक्कठा करने वाले जापान ऐरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी के यान में पतले स्टेनलेस स्टील और एल्युमीनियम तारों का जाल है । इस जाल की पट्टी का एक छोर इसके चारों तरफ घूमते कचरे के संपर्क में  रहता है । पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र से होकर गुजरने वाले जाल द्वारा विजली पैदा होती है जिसके कारण अंतरिक्ष के कचरे की गति धीमी हो जाती है और वह जाल की तरफ खिंचा चला आता है । 

    मानव के 50 वर्षो के अंतरिक्ष इतिहास में  धरती की सतह के चारो ओर घूमने वाले कचरे की एक खतरनाक पट्टी बन गई है इस कचरे का छोटा सा हिस्सा भी अगर किसी भी संचार नेटवर्क से टकरा कर उसे नुकसान पहुँचा सकता हैं ।  

    Tuesday 7 February 2017

    क्या है ये क्यूआर कोड(QR Code ) और इसे क्यों बनाया गया।

    क्यूआर कोड (QR code) तब चर्चा में आया जब जापान सरकार ने अपने उन वरिष्ठ नागरिको जो डिमेंशिया (भूलने की बीमारी ) से परेशान हैं उनके लिए विशेष क्यूआर कोड स्टीकर बनाया और उसे उनके नाखूनों पर चिपकाया जाता है ताकि ऐसे लोग यदि कभी घर का रास्ता भूल जाएँ या घर से कही चले जाएँ तो उन्हें आसानी से ढूढ़कर घर भेजा जा सके । 

    QR code का पूरा नाम  Quick Response Code

    ये स्कवायर बार कोड होते है , जो सबसे पहले जापान में ऑटोमोटिव उधोग के लिये विकसित तथा प्रयोग किये गए थे। 
    यह कोड बहुत सारी जानकारी को संगृहीत कर सकते हैं ।  
    चित्र - क्यूआर कोड
    figure -QR Code 

    Monday 6 February 2017

    Do provide highest Internet speed these country

    1. दक्षिण कोरिया :- 26.6  mbps  की इन्टरनेट स्पीड । 92.4 फीसद आबादी इन्टरनेट से जुडी है । 
    2. नॉर्वे :- स्पीड 20.1 mbps 98 फीसद आबादी इन्टरनेट से जुडी है । 
    3. हांगकांग :- स्पीड 20.1 mbps , यहाँ की  74.1 फीसद आबादी इन्टरनेट से जुडी है । 
    4. सिंगापूर :- स्पीड 18.2 mbps , यहाँ की  82.5 फ़ीसदी आबादी इन्टरनेट से जुडी है । 
    5. स्विट्जरलैंड :- स्पीड 18.4 mbps , यहाँ की  87.4 फ़ीसदी आबादी इन्टरनेट से जुडी है । 
    6. जापान :- स्पीड 18 mbps , यहाँ की 91.4 फ़ीसदी आबादी इन्टरनेट से जुडी है । 
    7. फिनलैंड :- स्पीड 17.3 mbps , यहाँ की  93.7 फ़ीसदी आबादी इन्टरनेट से जुडी है ।
    8. नीदरलैंड :- स्पीड 17.3 mbps , यहाँ की  93.7 फ़ीसदी आबादी इन्टरनेट से जुडी है ।
    इन सब में भारत 114व  स्थान पर है औसत इन्टरनेट  स्पीड 3.5 mbps है। यहाँ सिर्फ 34.8 फीसद आबादी इन्टरनेट से जुडी है ॥  

    राष्ट्रगान के महत्व तथ्य( Facts national anthem importance)


    • पहली बार राष्ट्रीय गान जन -गण -मन  16  दिसम्बर 1911 को कांग्रेस  के कलकत्ता अधिवेशन में गाया गया था । 
    • 30 दिसम्बर 1911 को ब्रिटिश सम्राट जॉर्ज पंचम भारत आए और कोलकाता के कुछ अखबारों में  लिखा गया कि संभबत : यह गीत उनके सम्मान में लिखा गया हैं लेकिन 1939 में रवेन्द्र नाथ टैगोर जी ने इसका विरोध किया । 
    • पहली बार राष्ट्रीय गान की संगीतबद्ध प्रस्तुति जर्मनी के हैम्बर्ग शहर में हुई । 
    • 24 जनवरी 1950 को जन-गण-मन को राष्ट्रगान के तौर पर संविधान सभा ने मान्यता दे दी । 
    • इसके अंग्रेजी अनुवाद को संगीतबद्ध किया मशहूर कवि जेम्स कजिन की पत्नी मारग्रेट ने जो बेसेंट थियोसोफिकल कॉलेज की प्रधानाचार्य थी । 
    • नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने इसका संस्कृतनिष्ठ बांग्ला से हिंदी में अनुवाद करवाया था, अनुवाद आबिद अली ने किया और इसे संगीबद्ध किया कैप्टन राम ठाकुर ने। 
    • राष्ट्रगान की शुरूआती दौर से नाम था 'सुबह सुख चैन '