Thursday 16 February 2017

पूर्व मध्र्यकालीन भारत

भारतीय सामंतवाद     

सामंतवाद :- पूर्व मध्यकालीन समाज में एक नवीन वर्ग का उदभव हुआ जिसे सामंत वर्ग के रूप में जाना गया । इन सामन्तों के हित भूमि से संबध्द थे । मूलतः नए भू -स्वामियों के रूप में ही सामंतो के भू -स्वामित्व संबंधी सर्वोच्च अधिकार स्थापित हुए और उन्हें राजस्व वसूली एवं प्रशासनिक अधिकार इस भूमि क्षेत्र में प्राप्त हुए । 
यधपि भारत में सामंतवाद का अंकुरण कुषाण -सातवाहन काल से ही दिखाई देने लगता है लेकिन इसका पूर्ण विकास पूर्व मध्यकाल में ही हुआ । इस काल की राजनीतिक ,आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियों ने सामंतवाद के विकास लिए उपयुक्त आधार प्रदान किया । 
यह सामंतवाद राजनीतिक व्यवस्था के साथ साथ सामाजिक -आर्थिक संबंधों को प्रदर्शित करता है । राजनैतिक क्षेत्र में सत्ता का विकेंद्रीकरण हुआ , एक राजा के अधीन अनेक सामंतो का प्रादुर्भाव हुआ ये सामंत अनेक राजनीतिक इकाइयों के रूप में स्थापित हुए । 
आर्थिक क्षेत्र में आत्मनिर्भर स्थानीय उत्पादन इकाईयाँ क्रियाशील हुई तथा आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्सांहन मिला तथा यह एक बंद अर्थव्यवस्था (Closed Economy ) के रूप में सामने आया । सामाजिक क्षेत्र में किसानों के शोषण एवं सामाजिक संघर्ष को प्रोत्साहन देने के रूप में सामने आया । धार्मिक क्षेत्र में निम्ण वर्गों के शोषण को औचित्य प्रदान करने वाली अवधारणा के रूप में सामने आया । 
  कुल मिलाकर नए भूमि संबंधों ने सामंत के रूप में एक ऐसे वर्ग को जन्म दिया जिसने तत्युगीन जीवन को गहरे स्तर पर प्रभावित कर जिस संरचना को निर्मित किया वह सामंतवादी व्यवस्था के रूप में जानी जाती है ।  



सामंतवाद का विकास  Next Topic comming soon..............

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